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अगस्त क्रांति एवं बाँका में महेंद्र गोप दल

कोमल कुमारी, शोध-छात्रा

विश्वविद्यालय इतिहास विभाग,

तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय,

भागलपुर।


अगस्त क्रांति एवं बाँका में महेंद्र गोप दल

भागलपुर के परशुराम दल ने जब ब्रितानी सरकार के सिपाहियों से बदला लेने का प्रोग्राम बनाया, तब उसका कार्य क्षेत्र बाँका सबडिवीजन में फैल गया। कूकवाड़ा के ठाकुर रूद्धेश्वरी प्रसाद सिंह फरार को पकड़ाने में ही नहीं बल्कि तमाम कांग्रेस वालों को सताने में आगे रहे। इसलिए परशुराम दल ने उनकी कचहरियाँ जलायी और उनके भेदिया गुलाबी चौधरी का खून कर दिया। पंजवारा के ठाकुर युगल किशोर सिंह ने अपने भगीना श्री टी0 पी0 सिंह को उकसाकर, जो उस समय अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट थे श्री राघवेंद्र सिंह के 82 बीघा घान को लुटवा दिया। इसलिए उनकी कचहरियाँ जलाये जाने लगी। फिर जिसने-जिसने कार्यकर्त्ताओं के खिलाफ गवाही दी वे लूटे जाने लगे। पीटे जाने लगे। और खास-खास तो मारे जाने लगें। बाद में श्री परशुराम सिंह ने बदला की भावना को नियंत्रित करना चाहा पर वह इतनी उग्र हो उठी थी कि इनके काबू के बाहर हो गई थी। फिर वे अपने दल से अलग बेलहर थाने में रहने लगी। धौरी गाँव इनका अड्डा हो गया। यहाँ से श्री जगदंबा सिंह के सुप्रबंध से “विप्लव“ नामक आजाद अखबार निकलता था, जिसने श्री परशुराम सिंह के नाम को चारो तरफ फैलाया था।

परशुराम दल की विचारधारा में कार्यकर्त्ताओं में मौके-बेमौके 52 जाने की भावना जगायी। बहारेमा में नरसिंह बाबू थे, 23 कार्यकर्त्ताओं के साथ उन्होंने सुना कि पुलिस और मिलिट्री धमराही सामान जब्त करने गई है। उन्होंने तुरंत ही जुलूस निकाला और कई गाँव की जनता को उत्तेजित करते हुए उस सरकारी ताकत के सामने डट गये। पुलिस और मिलिट्री संगीन तानकर पैंतरे में खड़ी हो गयी और कार्यकर्त्ता दल झंडे हिला-हिलाकर नारों से आसमान फाड़ने लगा। काफी जनता भी इक्कठी हो गई। फिर तो जब्तशुधा चीजों को वहीं छोड़कर पुलिस और मिलिट्री नौ दो ग्यारह हो गई। पर यह भावना नरसिंह बाबू की गिरफ्तारी से कमजोर पड़ गई। उनकी गिरफ्तारी के बाद उनकी जन्म भूमि बेलडीहा को पुलिस ने और भी तंग करना शुरू किया। अप्रैल के धावे में वह गाँव बहुत खूब लूटा-खसोटा गया। मर्दों को एक जगह इकट्ठा करके भीष्म सिंह दरोगा ने घर-घर में बलूचियों को धुमाया। एल0 पी0 गर्ल्स स्कूल के मास्टर श्री दामोदर बाबू ने श्री भीष्म सिंह का ध्यान इस ओर खींचा और भीष्म सिंह ने बलूचियों का ध्यान दामोदर बाबू की ओर खींचा। दामोदर बाबू पर मार पड़ने लगी और इतनी पड़ी कि हिलना-डुलना तक कठिन हो गया। इस भीषण आततायीपन के अवसर पर गहने छीने जाने की वजह से कितनी स्त्रियाँ के नाक-कान फट गये। दो स्त्रियों के साथ बलूचियों के द्वारा बलात्कार भी हुआ।

सरकारी रिकॉर्ड में महेंद्र गोप डाकू थे। परंतु डकैती छोड़कर वे क्रांतिकारी बन बसभत्ता के परशुराम सिंह के यहाँ आए थे। परशुराम सिंह ने उन्हें जिम्मेदारी दी कि घर के भेदिया से आंदोलन की रक्षा करो। अंग्रेजी सरकार से लोहा लो। उस सीधे-साधे बहादुर महेंद्र गोप ने अपनी समझ और संस्कार के अनुसार उनके आदेश का पालन किया। कितनी ही बार गोप दल की भिड़ंत मिलिट्री से हुई। झरना पहाड़ पर जिस समय गोप दल खा रहा था, उसे मिलिट्री ने घेर लिया। दल के लोग फौरन पहाड़ में घुसकर मिलिट्री का खात्मा करने लगे। दोनों ओर लगातार गोलियाँ चलती रही, फिर धीरे-धीरे फौज को अंगूठा दिखाते हुए गोप दल गायब हो गया। फौजियों को पीछा करने की हिम्मत नहीं हुई। सारे इलाके में फौजियों का जाल बिछा हुआ था। फौजियों के पास अच्छे घोड़े और अत्याधुनिक हथियार व बेतार से खबर करने का यंत्र था। किंतु महेंद्र गोप की छः फुटी घोड़ी हवा से बात करती थी।

महेंद्र गोप में मौके पर जगने वाली अक्ल भी थी। 1944 ईस्वी में वह सियाराम दल के साथ रन्नूचक (मकंदपुर) में ठहरे हुए थें, एकाएक मिलिट्री वालों ने सबों को घेर लिया। रबड़ की नली लगाकर सियाराम बाबू मटर की भूसे में छुप गए और इंडियन नेशनल कांग्रेस के डायरेक्टर श्री रामनारायण चौधरी सरसों के खेत में दुबक गए और महेंद्र गोप मिलिट्री की आंखों में धूल झोकते हुए सीधे उन्हें चुनौती देते हुए सामने से निकल गए। सरसों के पौधों के बीच रामनारायण चौधरी पकड़े गए। इस तरह सियाराम सिंह भूसे के ढे़र में छिपकर बचे।

नारायणपुर के बाबू कीर्ति नारायण सिंह का वक्तव्य है-जब मैं जेल से निकला तो शाहकुण्ड के श्री ठाकुर प्रसाद सिंह ने मुझे 40 रूपये दिए और कहा कि महेंद्र गोप ने किसी राजनीतिक पीड़ित की मदद में इसे खर्च करने को कहा है। मैंने रुपये नहीं लिये और कहा मैं चोरी-डकैती के रूपये नहीं लेता। मुझे सियाराम बाबू ने दो-तीन सौ रूपये दिये सो तो मैंने नहीं लिया, फिर उसके रूपये क्यो लूँ?

कुछ दिन बाद ठाकुर बाबू फिर से मिले और बोले गोप कहता है कि अगर कीर्ति बाबू कह दे कि मैंने पाप किया है तो, मैं आत्महत्या कर लूँ। सुनकर मैं अवाक रह गया और उनसे मिलने को तैयार हुआ पर मिल नहीं सका क्योंकि तब तक धोखे से ही उनकी गिरफ्तारी हो चुकी थी।

28 अगस्त, 1943 को सियाराम दल अपनी सारी शस्त्र समेट सोनबरसा पुलिस चौकी के हथियार लूटने के लिए नाव से चला। सियाराम बाबू, श्री पार्थ ब्रहमचारी, सरदार नित्यानंद सिंह, श्री महेंद्र गोप, गुलाली उर्फ गुलाब चंद्र और बिंध्येश्वरी सिंह उर्फ दुर्गादास सब मिलकर 60-65 जवान थे। दोनों ओर से धुंआधार गोलियाँ चलने लगी। बिहपुर के लड्डू सिंह और फौदी दास तथा नाथनगर के अर्जुन सिंह मारे गये। सरदार नित्यानंद ने देखा कि आजाद सैनिकों के पैर उखड़ गये है और अगर प्राण का मोह ना छोड़ा गया, तब सब के सब मारे जाएंगे। महेंद्र गोप अपने दल के साथ पसराहा रेलवे स्टेशन की तिजौरी को लूटे हुए बौंसी के जंगल की ओर भागे। इस दुर्घटना के बाद पुलिस दमन ने विकराल रुप धारण किया। 31 मील लंबे और 17 मील चौड़े थाने में 23 मिलिट्री कैंप खोले गए और पुलिस के अतिरिक्त प्रत्येक कैंप में दो दर्जन फौजी रख दिये गए। सियाराम दल के सभी पकड़े गये। महेन्द्र गोप को हत्या व डकैती के आरोप में फाँसी दी गई। सियाराम सिंह, श्री पार्थ ब्रहमचारी, चन्द्रदेव शर्मा और अम्बिका सिंह सरकार की सारी ताकत को अंगूठा दिखाते ही रहे और कांग्रेस मंत्रिमंडल द्वारा मुक्त हो जाने पर ही जनता के बीच प्रकट हुए।


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