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  • rashmipatrika

अफसर बिटिया

आलो दास

हिंदी विभाग

एस पी कॉलेज, दुमका



अफसर बिटिया

टिप्पणी:- कहानी एक मध्यमवर्ग परिवार के बारे में, इस परिवार में एक ऐसा चरित्र है, जो मध्य वर्ग में पैदा होने के कारण बहुत परेशानियां झेलती है । उसके सपने बहुत बड़े-बड़े होते हैं ,लेकिन उसे पूरा करने के लिए उनकी हैसियत नहीं होती है, वह एक सामान्य मध्यवर्ग परिवार में पली-बढ़ी है। वह अपने परिवार के कमजोर आर्थिक स्थिति को समझती थी । लेकिन वह बाकी सारी चीजें से समझौता करने को तैयार थी, लेकिन अपने सपनों के साथ नहीं । अपने परिवार को देखकर उनकी स्थितियों को समझ कर खुद को बहुत ही असहाय महसूस करती है ‌। और वह ठान लेती है की एक दिन वह बड़ा अफसर बनकर अपने घर की आर्थिक स्थिति को जरूर सुधरेगी और सबकी हर छोटी बड़ी जरूरतों को पूरा करेगी। उसका सपना एक बड़ा अफ़सर बनने का होता है, क्योंकि उसके पिताजी एक ऑफिस में एक चपरासी का काम करते थे । तो आइए देखते हैं कि कैसे एक लड़की अपने सपनों को पूरा करती है ,अपने सपनों को पूरा करने के लिए उससे कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है क्या वह अपने सपने पूरा कर पाती है या उसका सपना, सपना ही रह जाएगा । एक मध्यवर्ग परिवार में बहुत सी दिक्कतें होती हैं और खासकर एक लड़की वह भी एक गांव में रहने वाली। उसे समाज की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है । ग्रामीण क्षेत्र के लड़कियों को बहुत संघर्ष करना पड़ता है अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए।

यह कहानी एक लखनपुर नमक गांव की एक मध्यवर्ग परिवार की कहानी है। यह एक संयुक्त मध्यवर्ग परिवार है।जिसमें लगभग 12 लोग रहते हैं जिसमें रीमा मुख्य पात्र है, उसके पिता- सत्येंद्र नारायण ,माता- भवानी देवी और रीमा की और दो छोटी बहने थी, एक का नाम गीता और दूसरी का संगीता और एक छोटा भाई भी था जिसका नाम अनिकेत था। सत्येंद्र नारायण के बड़े भाई इनका नाम राजेंद्र नारायण और पत्नी का नाम रामवती नारायण और इनके दो बेटे और बेटी थी। राजेंद्र का बड़े बेटे का नाम आदित्य और छोटे का नाम नकुल था और बड़ी बेटी का नाम अनामिका और छोटी का नाम आकांक्षा थी। सारे लोग एक आंगन में ही साथ रहा करते थे रीमा की आयु 6 साल थी ,और उसके भाई बहन उससे दो-तीन साल के छोटे-छोटे थे। सत्येंद्र दफ्तर में एक छोटी मोटी चपरासी का काम करता था और राजेंद्र खेती-बाड़ी कर अपना गुजारा करता था। एक दिन संध्या समय घर के सारे सदस्य आंगन में बैठे बात कर रहे थे और बच्चे आंगन में खेल रहे थे तभी खेल खेल में रीमा उसके पापा से कहती है।


रीमा :- पापा-पापा मैं बड़ी होकर एक बड़ी अफ़सर बनूंगी । आप जहां काम करते हैं वहां एक दिन मैं भी काम करूंगी और आप मेरे पास बैठे रहोगे सब मुझे मैडम और आपको सर कह कर सम्मान देंगे । तब आपको काम नहीं करना पड़ेगा, तब सब आपके लिए काम करेंगे।

अनिकेत :- तू और अफ़सर बनेगी हा- हा -हा (हंसने लगता है) तू नहीं , बनूंगा तो मैं एक बड़ा डॉक्टर और सब का इलाज करूंगा । घर में किसी का भी कुछ भी होगा तो मैं उसका इलाज करूंगा और पैसे भी नहीं लगेंगे। मैं सब को ठीक करूंगा।

आदित्य :-तू अफ़सर कैसे बनेगी, उसके लिए तो बहुत पढ़ना पड़ता है और बहुत समय भी लगता है तेरी तो शादी हो जाएगी और तू ससुराल चली जाएगी ,क्यों चाचाजी सही कहा ना ?हा -हा- हा।

सत्येंद्र :- हां बेटा शादी तो करनी पड़ेगी सबको करनी पड़ती है। तेरी शादी मैं बहुत धूमधाम से करूंगा सारे गांव वाले देखते रह जाएंगे । सब कहेंगे रीमा की कितनी सुंदर शादी हुई। हमारी इतनी हैसियत ही कहां जो तूझे अफसर बना सकूं। उसके लिए बहुत पैसे चाहिए होते हैं ,और फिर तेरे छोटे भाई बहन भी तो है, उनको भी तो बड़ा करना है इतने पैसे कहां हमारे पास।

रीमा :- नहीं मुझे शादी नहीं करनी है ,मैं पढ़ लिखकर कुछ बनाऊंगी और सबका ख्याल रखूंगी और मेरे भाई बहनों को मैं सब कुछ दिलाऊंगी।

भवानी :- अच्छा अच्छा चलो बहुत हुआ बहस बाजी अब सब हाथ मुंह धो लो खाना परोसती हूं, जाओ बच्चों और बाकी लोग भी जाइए हाथ मुंह धो दीजिए जल्दी आइए। रामवती जीजी आप आसन और थाली लगा दीजिए।

रामवती :- हां छोटी मैं आसन और थाली निकाल रही हूं, तू खाना निकाल रसोई से और थाली में परोस दे, मैं बच्चों को खिला देती हूं।

अनिकेत :- बड़ी मां आज खाने में क्या बना है?

रामवती :- दाल और रोटी।

आदित्य :- रोज रोज दाल रोटी खाकर मन उब गया है कुछ अच्छा खाने का मन कर रहा है, जिन लोगों के पास बहुत पैसे होते हैं वह लोग इतने अच्छे होते हैं ना रोज अच्छे-अच्छे खाना खाते हैं।

भवानी :- चलो मुंह बंद और खाना शुरू जल्दी से खत्म करो और सब अपने अपने-अपने जगह जाकर सो जाना कोई बदमाशी नहीं करेगा।


खाना खाने के बाद फिर सारे बच्चे उछल कूद करने लगता है, तभी सत्येंद्र सारे बच्चों को डांटता है और कहता है जाओ सो जाओ कल सुबह उठना भी है । अगले दिन सुबह होते ही सत्येंद्र तैयार होकर द्वार पर खड़े किसी का प्रतीक्षा कर रहा होता है तभी रीमा सत्येंद्र को देख कर पूछती है।

रीमा :- पापा आज आप दफ्तर नहीं गए छुट्टी है क्या ? पर आप तो तैयार हुए हैं किसी का प्रतीक्षा कर रहे हैं क्या?

सत्येंद्र :- नहीं बेटा छुट्टी तो नहीं है, आज हमारी अफ़सर मैडम हमारे यहां के इलाका मैं आ रही है यहां का कामकाज देखने और मुझे यहां रह कर उन्हें यह इलाका दिखाना होगा क्योंकि मैं नहीं रहता हूं ना।

रीमा :- वह यहां क्या काम करने आएगी पापा।

सत्येंद्र :- वह हम गांव वालों की जो -जो समस्याएं हैं उसे अपनी आंखों से देख कर और सबकी परेशानियां सुनकर जाएगी और उनकी परेशानियों को दूर करने की कोशिश करेगी।

अनिकेत :- पापा- पापा आपके अफसर मैडम बड़ी गाड़ी से आएंगी ना ? उनके पास बड़ी गाड़ी होगी ना हमें भी उसमें चढ़ना है।

सत्येंद्र :- नहीं बेटा वह तूम्हारे चढ़ना का नहीं होता है, उसमें जो लोग अफ़सर होते हैं वही लोग चढ़ते हैं और उनके घर वाले ,तूम कैसे चढ़ा सकते हो।

आदित्य :- वह देख अनिकेत एक कितनी बड़ी गाड़ी आ रही है, सफेद रंग की लगता है इसी में अफ़सर मैडम आ रही होंगी और उनके आगे पीछे भी देख दो-चार गाड़ियां और है।

सत्येंद्र :- लगता है मैडम आ गई। चलो बच्चों अंदर जाओ और मैडम के लिए कुर्सी लाकर रखो।

आदित्य कुर्सी लाने जाता है रीमा और अनिकेत वहीं खड़े आपस में बात करते हुए कहते हैं कि देखो दीदी कितनी बड़ी गाड़ी है, कितनी सुंदर एकदम चमक रही है, उनके आगे पीछे भी गाड़ियां हैं कितने सारे बॉडीगार्ड है उनके, कितना अच्छा है ना सब। हां भाई सब बहुत सुंदर है ( रीमा कहती है।)

रीमा :-देखना तू अनिकेत मैं भी एक दिन अफ़सर बनुंगी और तब मेरे पास भी एक बड़ी गाड़ी होगी जिसमें तूम सबको चढ़ाऊंगी ,और वह सारी चीजें जो तूम अभी देख रहे हो ना वह मेरे पास भी होगी और तब तूम लोगों मेरे गाड़ी में आराम से चढ़कर घूमना।

गाड़ियां आकर वहां खड़ी हो गई जहां सत्येंद्र उनका प्रतीक्षा कर रहा था । गाड़ियां रुकी पहले उनके आगे पीछे के गाड़ी से उनके अंगरक्षक उतरे फिर वह मैडम के उतरने के लिए गाड़ी का दरवाजा खोलता है और तब मैडम उतरती है। सत्येंद्र मैडम को देखते ही नमस्कार (Salute) करता है। और मैडम को वहां से अंदर बैठने के लिए ले जाता है। और उनका आदर सम्मान में लग जाता है ,उनके लिए चाय पानी नाश्ते का व्यवस्था करना यह सारे काम सत्येंद्र करने लगे।

वही रीमा अपने घर के द्वार से खड़ी यह सब कुछ देख रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी यह सोच कर कि जब मैं भी अफ़सर बनुंगी तो लोग मुझे भी इतना प्यार करेंगे और इतना सम्मान करेंगे। उन सबके चले जाने के बाद भी रीमा इस चीज को सोचती ही रहती है और बार-बार इस दृश्य को अपने मन में अनुभव कर रही थी सत्येंद्र के घर लौटते ही वह कहती हैं।

रीमा :- पापा - पापा मुझे भी बड़े होकर अफ़सर ही बनना है। और तब मैं जब गांव आऊंगी तो आप भी मेरे साथ बड़े गाड़ी में चढ़कर आना।

सत्येंद्र :- हां मेरी गुड़िया तू सब बनेगी।(मन ही मन मुस्कुराता है रीमा की बातें सुनकर।)

देखते ही देखते हैं 10 वर्ष बीत जाता है और रीमा भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगती हैं ,उसकी स्कूली की पढ़ाई खत्म हो जाती है। वह अपनी बोर्ड के परीक्षा में सबसे अधिक नंबर लाती है वह पूरे स्कूल में टॉप होती है। वह बहुत खुश थी इस बात को लेकर की उसका इतना अच्छा नंबर आया है अब वह आगे भी खूब मन लगाकर पढ़ाई करेगी और अपने सपने को पूरा करेगी।

उस समय जब रीमा कॉलेज में दाखिला लेने वाली थी तो सत्येंद्र का तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रहा था वह बीमार था घर में थोड़ी आर्थिक स्थिति कमजोर थी। दाखिला के लिए जो पैसे चाहिए थे। वह भी नहीं मिल पा रहे थे। फिर भी किसी तरह पैसों का बंदोबस्त कर वह कॉलेज में दाखिला तो ले लेती है लेकिन सत्येंद्र सोच में पड़ जाता है कि उसका परिवार अब कैसे चलेगा वह बीमार रहता है काम नहीं कर पाता है , चार -चार बच्चों का देखभाल, खाना पीना , पढ़ाई, रीमा की कॉलेज फी ,एक्जाम फी, किताब, कैसे वह चलाएगा।

एक दिन गांव की कुछ लोग रीमा के घर आते हैं, सत्येंद्र का हाल चाल पूछने बातों बातों में ही वह कहते हैं की

एक महिला :- भवानी अब तूम्हें तूम्हारी बड़ी बेटी रीमा के लिए एक अच्छा सा लड़का देखकर उनकी शादी करवा देनी चाहिए। क्या करेगी ज्यादा पढ़ लिख कर बाद में तो चूल्हा - चौका ही करना है।

दूसरी औरत :- हां -हां बहन बिल्कुल सही कह रही है शादी करवा दो, उसके बाद ओर भी तो दो बहने हैं उसकी, उनकी भी तो शादी करनी होगी ,तो जब तक बड़ी कि नहीं होगी बाकियों का कैसे करोगे, ज्यादा पढ़ाओ लिखाओगी तो सर पर चढ़ जाएगी। गांव में उसकी उम्र की लगभग सभी लड़कियों की शादी हो चुकी है , तूम्हारी बेटी की ही अभी तक नहीं हुई इसकी भी जल्दी से लगा दो।

महिलाएं आपस में बात करते हुए कहती है कि:- देखो तो इन लोगों को , इन्हें तो अपने बेटी की शादी की कुछ पड़ी ही नहीं है ,भगवान ना करें अगर कल दिन सतेंद्र को कुछ हो जाता है तो तीन-तीन बेटियों की शादी यह बेचारी भवानी कैसे करेगी। इतनी बड़ी लड़की को घर बिठा के रखा है लगता है इनकी बेटी में ही कोई दोष होगी जिस कारण इसके घरवाले इसकी शादी ही नहीं कर रहे हैं।

सत्येंद्र मन ही मन सोचता है कि अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरा परिवार का क्या होगा इसलिए मुझे अपने बेटी की शादी के लिए अब लड़का ढूंढना चाहिए।

इन दिनों रीमा की परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि उसे दोनों समय ठीक से खाना भी नसीब नहीं हो रहा था और ना ही उनके पास पैसे थे। सत्येंद्र के बीमार होने के कारण घर में कमाई का कोई दूसरा सदस्य नहीं था बस किसी तरह घर चल रहा था। पैसे की कमी के कारण रीमा के पढ़ाई रुक गई । जब सत्येंद्र बीमार था तो रीमा की मां भवानी छोटी- मोटी काम कर इधर उधर से पैसे इकट्ठा कर रही थी, और रीमा घर में ही छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपने घर की स्थिति को और अपनी पढ़ाई को संभाल रही थी । उसकी शादी तय कर दी गई। रीमा शादी नहीं करना चाहती थी , वह बहुत रो रही थी, गिड़गिड़ा रही थी वह पढ़ाई करना चाहती थी अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी । रीमा की ना मंजूरी में ही उसकी शादी तय कर दी गई।

देखते ही देखते शादी वाले दिन नजदीक आने लगे घर में शादी की तैयारियां होने लगी। रीमा अपने पापा के स्थिति को देखते हुए कुछ बोल नहीं पा रही थी, लेकिन वह अपने मन को शादी करने के लिए राजी भी नहीं कर पा रही थी। गांव वालों की बातें रिश्तेदारों के ताने से घर में बहुत परेशानियां थी रीमा और परेशानियां नहीं बढ़ाना चाहती थी। रीमा के मन में बहुत तरह-तरह की बातें चलती है‌। उसके मन मैं उसके अफसर बनने की सपना बार-बार आ रही थी। उसे पता था शादी के बाद उसकी कोई भी सपना पूरा नहीं होगा। घर गृहस्ती मैं ही उसका जीवन बीत जाएगी ,फिर रीमा मन ही मन अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक फैसला लेती है, वह यह तय करती है कि वह शादी नहीं करेगी और वह एक पत्र लिखकर घर छोड़कर चली जाती है, अपने अफसर बनने की सपनों को पूरा करने के लिए । वह शहर आ जाती है गांव से घर से भागकर वह अकेली शहर में रहती है वह पढ़ी लिखी थी, पढ़ने में वह बहुत तेज थी, और पहले वह अपने गांव में ट्यूशन भी पढ़ाया करती थी छोटे बच्चों को , वह शहर आकर भी घर -घर पर जाकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करती थी, और थोड़े से छोटे-मोटे काम कर अपनी पढ़ाई को जारी रखी थी।

वह परीक्षाएं देने लगी, वह कड़ी मेहनत करने लगी और वह एक अफसर बनने की परीक्षा में उत्तीर्ण भी हो जाती है वह एक अफसर बन जाती है । उसकी काम के लिए उसे दूसरी जगह भेज रहे थे। तब रीमा ने बहुत मिन्नतें कर और आवेदन कर अपनी पोस्टिंग अपने गांव के आसपास के इलाके में कराना चाहती थी। आवेदन स्वीकार हुई और वह अपने गांव के आसपास एक ऑफिस में पोस्टिंग हुए कुछ दिन बाद गांव मैं पानी की परेशानियों के कारण गांव के कुछ लोग और साथ ही सत्येंद्र भी दफ्तर पहुंचता है शिकायत करने सत्येंद्र और उनके साथियों बात करने के लिए मैडम के ऑफिस में आते हैं ,और जैसे ही दरवाजा खोल कर वह लोग बात करने आगे बढ़ते ही हैं कि रीमा को देखकर सत्येंद्र चौक से आता है, सत्येंद्र उसके घर से भागी हुई बेटी को अफसर बनता देख अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं कर पा रहा था। सत्येंद्र उसके घर से चले जाने के कारण उससे बहुत नाराज था । क्योंकि उसके जाने के बाद सत्येंद्र को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा उन्हें लोगों के पास अपमान होना पड़ा, उनके और दो छोटी बेटियों का शादी देने मैं बहुत दिक्कतें हुई, इन सब के कारण सत्येंद्र रीमा से बहुत नाराज था गुस्सा था‌ । और रीमा से बात तक नहीं करना चाहता था वह वहां बिना कुछ बोले वहां से रीमा से मुंह फेर कर चले ही जा रहा था । तब रीमा ने अपनी गलतियों के लिए अपने पापा के पैर पकड़कर माफी मांगने लगी और रोने लगी वह कहती है पापा मैं मानती हूं मेरा तरीका गलत था ,लेकिन मेरा इरादा गलत नहीं था मैंने जो भी गलतियां की उसके लिए मुझे माफ कर दीजिए और मुझे फिर से अपना लीजिए। यह कहते हुए रीमा बहुत रोने लगी और पैरों में गिर कर माफी मांगने लगी सत्येंद्र का मन भी पिघल गया इतने वर्षों बाद अपने बिछड़े हुए बेटी को देखकर , वह भी रीमा को गले से लगा लेती है और दोनों रोने लगते हैं फूट-फूट के, सब कुछ भूलकर वह रीमा को अपने साथ घर जाने को कहती है । रीमा सत्येंद्र के साथ घर जाती है सारे गांववाले घर वाले उसे बड़ी गाड़ी में अफसर बनकर आते हुए देख चौक गए लोगों ने जितने भी ताने अपमान किए थे। सबकी मानो बोलती बंद हो गए रीमा की मां भवानी भी उसे देखकर फूट-फूट कर रोने लगी अनिकेत बड़ा हो चुका था ,वह एक होनहार डॉक्टर बन चुका था ।उसके घर की स्थिति अब पहले से बेहतर बन चुकी थी। अनिकेत की शादी भी हो चुकी थी सारे लोगों ने रीमा को फिर से अपना लिया और सब भूलकर फिर से एक साथ प्यार से रहने लगे अंत में सीमा कहती हैं पापा मेरा सपना था मैं एक अफसर बनकर आपको वह सम्मान दिलाऊ जिसके आप हकदार हो और आज मुझे इस बात का गर्व है कि मैं आपको वह सम्मान दिला पा रही हूं।

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