- rashmipatrika
अभिप्रेरणा
डॉ0 ट्रीजा जेनिफर टोप्पो
सहायक प्राध्यापिका
मनोविज्ञान विभाग
संथाल परगना महाविद्यालय
सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका
झारखण्ड
अभिप्रेरणा
दिन प्रतिदिन के जीवन में हमलोग अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। हम इन कार्यों को क्यों करते हैं ? शायद, इसलिए करते हैं क्योंकि इसके पीछे कोई-न-कोई अभिप्रेरण अवश्य होता है। अब प्रश्न उठता है कि अभिप्रेरण किसे कहते हैं ? इसका स्वरूप क्या है ?
अभिप्रेरण (डवजपअंजपवद) से सामान्य अर्थ वैसी अवस्था से होता है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। परन्तु मात्र इतना कह देने से इसका अर्थ स्पष्ट नहीं होता है। अभिप्रेरण का सही अर्थ समझने के लिए कुछ मनोवैज्ञानिकों के विचारों को नीचे उपस्थित किया जा रहा है।
बेरोन, बनै तथा कैन्टोविज (ठंतवदए ठलतदम - ज्ञंदजवूपज्रए 1980) के अनुसार, ‘‘मनोविज्ञान में हमलोग अभिप्रेरण को एक काल्पनिक आन्तरिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं जो व्यवहार करने के लिए शक्ति प्रदान करता है तथा एक खास उद्देश्य की ओर व्यवहार को ले जाता है।’’ मार्गन, किंग, विस्ज तथा स्कोपलर (डवतहंदए ज्ञपदहए ॅमप्रे - ैबीवचसमतए 1986) के अनुसार, ‘‘अभिप्रेरण से तात्पर्य एक प्रेरक तथा कर्षण बल से होता है जो खास ल़क्ष्य की ओर व्यवहार को निरन्तर ले जाता है।’’
विटिंग एवं विलियम तृतीय (ॅपजजपदह ंदक ॅपससपंउ प्प्प्ए 1984) के अनुसार, ‘‘अभिप्रेरण अवस्थाओं का एक ऐसा समुच्चय है जो व्यवहार को सक्रिय करता है, निर्देशित करता है तथा किसी लक्ष्य की ओर उसे बनाये रखता है।’’
लेफ्टन (स्मजिवदए 1979) के अनुसार, ‘‘अभिप्रेरक प्राणी के भीतर एक ऐसी सामान्य अवस्था है जो लक्ष्य-निर्देशित व्यवहार उत्पन्न करता है। प्रणोदों, आवश्यकताओं एवं इच्छाओं से उत्पन्न यह एक कल्पित अवस्था होती है।’’
उपरोक्त मनोवैज्ञानिकों के विचारों पर यदि हम गौरपूर्वक विचार करें तो पायेंगे कि अभिप्रेरण व्यक्ति की एक ऐसी आन्तरिक अवस्था को कहा जाता है जो उसमें कुछ क्रियाएँ उत्पन्न करके उसके व्यवहारों को एक खास दिशा में उद्देश्य की प्राप्ति की ओर अग्रसरित करता है। इन मनोवैज्ञानिकों के विचारों का विश्लेषण करने पर हमें अभिप्रेरण के स्वरूप का पता चलता है जिसका वर्णन निम्नांकित है :-
1. अभिप्रेरण व्यक्ति की एक आन्तरिक अवस्था (प्दजमतदंस ैजंजम) को कहा जाता है। यह आन्तरिक अवस्था काल्पनिक होती है। अतः इसे व्यक्ति के शरीर के भीतर ठोस रूप से देखा नहीं जा सकता है।
2. अभिप्रेरण में जो आन्तरिक अवस्था होती है उससे व्यक्ति में कुछ क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं।
3. अभिप्रेरण में उत्पन्न क्रियाएँ एक निश्चित दिशा में यानी उद्देश्य प्राप्ति की ओर बढ़ता है। इसका मतलब यह हुआ के प्रत्येक अभिप्रेरण में एक निश्चित लक्ष्य होता है जिसकी ओर व्यक्ति का व्यवहार प्रेरित होता है।
4. अभिप्रेरण व्यवहार उत्पन्न होने के बाद उद्देश्य की प्राप्ति तक यह जारी रहता है।
एक उदाहरण देकर अभिप्रेरण के स्वरूप की व्याख्या हम इस प्रकार से कर सकते हैं -
मान लीजिए कि आपको भूख लगी है और आप किसी होटल में जाकर भोजन कर अपनी भूख मिटाते हैं। यदि इस उदाहरण की विस्तृत व्याख्या की जाय, तो हमें अभिप्रेरण के उपर्युक्त चार गुणों का समावेश उसमें मिलेगा। यहाँ भूख व्यक्ति की आन्तरिक अवस्था है जिसे बाहर से देखा नहीं जा सकता है (पहला कारक)। इसे मनोवैज्ञानिकों ने आवश्यकता (छममक) की संज्ञा दी है। यह आन्तरिक अवस्था व्यक्ति में कुछ विशेष क्रियाएँ जैसे होटल ढूँढना, होटल में जाकर भोजन के बारें मे पूछताछ करना आदि उत्पन्न करता है (कारक 2)। इस तनाव एवं क्रियाशीलता की अवस्था को मनोवैज्ञानिकों ने प्रणोद (क्तपअम) की संज्ञा दी है। व्यक्ति द्वारा किये गये ये सभी क्रियाएँ कुछ ऐसी होती हैं जो एक निश्चित दिशा में एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति की ओर ले जाता है (कारक 3)। इस उदाहरण में निश्चित लक्ष्य भोजन (थ्ववक) की प्राप्ति है। इसे मनोवैज्ञानिकों ने प्रोत्साहन की संज्ञा दी है। व्यक्ति में क्रियाशीलता की अवस्था तब तक पायी जाती है जगतक कि उसे भोजन प्राप्त नहीं हो जाता है (कारक 4)। इस तरह से हम देखते हैं कि मनोवैज्ञानिकों ने अभिप्रेरण के स्वरूप की व्याख्या तीन मूल तŸवों (म्समउमदजे) के द्वारा की है - आवश्यकता (छममक), प्रणोद (क्तपअम), प्रोत्साहन (प्दबमदजपअम)। इसे मनोवैज्ञानिकों ने आवश्यकता-अन्तर्नोद प्रोत्साहन सूत्र (छममक.कतपअम.पदबमदजपअम वितउनसं) भी कहा है।
अभिप्रेरणा एक आंतरिक अवस्था है। इसकी शुरूआत हमेशा किसी न किसी चीज की कमी से, किसी चीज की आवश्यकता की पूर्ति के कारण उत्पन्न होती है। अभिप्रेरणा की उत्पिŸा के साथ ही व्यक्ति उस चीज की कमी को पूरा करने के लिए क्रियाशील हो जाता है। यह क्रियाशीलता व्यक्ति में तब तक निरंतर रूप से बनी रहती है, जब तक उस चीज की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो जाती है।
विद्यार्थी जीवन में अभिप्रेरणा का महŸवपूर्ण स्थान है। जिस विद्यार्थी में शिक्षा की अभिप्रेरणा ही मात्रा जितनी अधिक होगी, वह संपूर्ण रूप से शिक्षा ग्रहण के प्रति उतना ही अधिक सक्रिय होगा।
शिक्षा से अभिप्रेरित विद्यार्थी की चाल में तेजी स्पष्ट रूप से प्रकट होती है, जोशीली आवाज रहती है, वह ऊर्जावान रहते हैं। ऐसे अभिप्रेरित विद्यार्थी का संपूर्ण व्यक्तित्व ही ऊर्जा से भरपूर रहता है। शिक्षा से अभिप्रेरित विद्यार्थी की प्रत्येक क्रिया शिक्षा ग्रहण करने की ओर चयनात्मक होता है। उसके व्यवहार एक खास दिशा की ओर, उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ और व्यवहार सुसंगठित होते हैं।
मनोवैज्ञानिक रूप से जिस विद्यार्थी में शिक्षा की अभिप्रेरणा की मात्रा जितनी अधिक होगी वह विद्यार्थी उतना ही अधिक सक्रिय होकर शिक्षा ग्रहण करने के लिए अग्रसर होगा।
हमारे इस संथाल परगना महाविद्यालय, दुमका, झारखण्ड के सभी छात्र-छात्राओं के लिए यह शुभ संदेश है कि इपने अंदर शिक्षा अभिप्रेरणा की भूख को जागृत करें। शिक्षा अभिप्रेरणा की भूख को प्रिय छात्र-छात्राओं को खुद ही जगाना है और जब यह भूख जग जाएगी तो विद्यार्थीगण आपको इसकी तृप्ति किये बिना या भूख को शांत किये बिना बेचैनी का अनुभव होने लगेगा।
निष्कर्षतः अभिप्रेरणा व्यक्ति की एक आंतरिक अवस्था है। अभिप्रेरणा से व्यक्ति में क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं, व्यक्ति की ये क्रियाएँ एक निश्चित दिशा में खास उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर चलती रहती हैं। प्रत्येक अभिप्रेरणा में एक निश्चित लक्ष्य होता है, जिसकी ओर व्यक्ति का व्यवहार प्रेरित होता है। विद्यार्थी जीवन में भी एक निश्चित लक्ष्य का होना अनिवार्य है। निश्चित लक्ष्य से अभिप्रेरित होकर विद्यार्थीगण निरन्तर सक्रिय, क्रियाशील रहकर अपने लक्ष्य को अवश्य ही प्राप्त करेंगे।
धन्यवाद।