- rashmipatrika
अरुण कुमार सिन्हा की कवितायेँ
अरुण कुमार सिन्हा दुमका, झारखंड पुछता है दशानन
सवाल वाजिब है कि नहीं है यह तो बाद का सवाल है पर सवाल तो लोग पुछते ही हैं सवाल रावण भी पुछता है कि हर साल धर्म अधर्म न्याय अन्याय के नाम पर मेरा पुतला दहन किया जाता है मेरे पुतले को जलाने के लिए बड़े बड़े लोग सजधज के आते हैं बड़े से मैदान में बड़ा सा आयोजन होता है आज मेरे पुतले को जलाकर शायद मानवता अधर्म अन्याय अनाचार कदाचार छद्म व्यवहार हिंसा आदि से मुक्त हो जाएगी समाज समष्टिमूलक समतामूलक धर्म और न्याय आधारित हो जाएगा लेकिन विडम्बना तो यह है कि जितना मुझे फूँका जलाया जाता है रावणत्व उतना ही फलता फुलता फैलता जाता है जलाओ फूँको तापोदहन का जश्न मनाओ पर एक बात तो बताते जाओ आखिर कब तक मेरा पुतला दहन करते रहोगे कब तक ये छद्म आचरण और व्यवहार किया जाएगा कोई तो बताए कि जिसे स्थापित करने के लिए मुझे जलाया जा रहा है वो राम राज वो सुराज कब आएगा वो राम राज कब आएगा।
(कुछ बातें जो पीड़ाओं को हल्की कर जाती है कहने-सुनने से दुख कम हो जाता है) धीरे से अन्तर्मन की पीडाओं की बाँच लिखावट धीरे से कुछ कहने को हृदयतल से उठती हैं लहरें धीरे से। मन ही मन को कहता सुनता और सुनेगा पीड़ा कौन मन तो बस मौन ही रहता, आँखे बह जाती धीरे से। कलम की आखर पढ़ी भी जाती , मन की आखर बाँचे कौन खुद ही लिखता खुद ही पढ़ता भरमाता फिर धीरे से। अकथ कथाएँ पीडाओं की, अब कौन से ठौर गहुँ रातें जगती कट जाती हैं, दिन भी कट जाता धीरे से। कितना सब्र करेगी धरती, सुखी है जो बरसों से गरजन तरजन खुब हुआ पर बरसा पानी धीरे से। दुख से दुख बतियाता रहता सुख के छाँव सूख गए सूखे खेतों की कैसी नियति इस बार भी भींगे धीरे से।। एक आम आदमी की मौत
एक आम आदमी की मौत भी कोई
मौत होती है क्या
उसका जन्म भी एक हादसे की
तरह होता है
और मौत भी एक हादसा ही होता
है
वह मौत एक आदमी की मौत कोयह
साबित कर जाती है कि
मौत तो शाश्वत है
मौत सबको आती है
आदमी चाहे जिस स्तर का हो
जीवन की अंतिम परिणति तो मृत्यु
ही होती है
पर ये मौत भी कितनी बेहया बेशर्म है
जो किसी को नंगा कर जाती है
मरने वाले की जेब अगर भरी न हो
उसके उत्तराधिकार में धन जमीन
जायदाद
बड़ा नाम बड़ी विरासत न जुड़ी हो
तो वह मौत एक लावारिस मौत
एक अदद हादसा बनकर
रह जाती है
और आम आदमी ऐसे हादसों का शिकार होता रहता है।