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आइए एक शुरुवात करते हैं...

आइए एक शुरुवात करते हैं...

यह उम्मीद का समय है, खूबसूरती के निर्माण के लिए। ऐसा नहीं है कि इससे पहले यह प्रयास नहीं हुए बल्कि कई मायनों में ज्यादा बेहतर प्रयास हुए हैं। मनुष्य स्वाभाविक रूप में इसका प्रयास सतत करता ही रहता है बस उसमें आदमियत का भाव होना चाहिए। खूबसूरती के निर्माण में ऐसी उम्मीद का निर्माण बहुत ध्यान से करना चाहिए जिसमें मात्र कल्पनाएँ न हों, बल्कि यह उम्मीद विचार की नींव पर निर्मित हो तो भविष्य को मजबूती मिलेगी। पिछले कुछ समय से हम गहरी असंभावनाओं से गुज़र रहें हैं, यह असंभावना अधिकतम रूप में अव्यवस्था की है जिसके लिए बहुत हद तक हम स्वयं ज़िम्मेदार हैं। क्या हमने इससे अल्प मात्र भी सीखने की कोशिश की? क्या हमने ध्यान दिया कि व्यवस्था व नियम समय व परिवेश आधारित होते हैं। सामाजिक व्यवस्था के अनेक नियम-परिनियम ध्वस्त हो गए, विकल्प का निर्माण किया गया और बहुत कुछ जो अस्वीकार था वह स्वीकार किया गया। दुनिया ने कथित विकास की जो गति पकड़ी वह ध्वस्त हो गई और विकास के मठाधीशों का यथार्थ सबके समक्ष अपनी कुरूपता के साथ उपस्थित हुआ। क्या हम फिर से भागने लगेंगे या थोड़ा ठहर कर सोचने की कोशिश करेंगे कि मंजिल एक लक्ष्य हो सकता है लेकिन उसके लिए रास्तों का निर्माण किया जाना बहुत आवश्यक है। परिस्थितियों ने क्या हमें ‘लोक की ओर लौटो’ की उद्घोषणा नहीं की? सब कुछ होते हुए भी हमने लोक की स्वाभाविकता को ही स्वीकार किया और उसने शरण भी दी। विकास और भौतिकता की विद्रूपता ने सुविधा सम्पन्न और सुविधाओं के लिए अपना सर्वस्व जीवन लगा देने वालों के बीच की दूरी की वास्तविकता को उपस्थित कर दिया। अब हमारे सामने दुनिया के बारे में सोचने के नए प्रतिमानों की आवश्यकता को महसूस किया जा रहा है कि वैचारिकी व चिंतन के सर्वव्यवहार को कैसे स्थापित किया जाए? ऐसा नहीं है कि हमारे पास संसाधन व चिंतन नहीं है बल्कि उसके व्यवहार व अनुप्रयोग के बारे में सोचा जाना आवश्यक है। यह लिखते हुए मुझे महात्मा गांधी के विचारों में से ‘पागल दौड़’ का विचार स्मृति में आ रहा है। आज निश्चित रूप में व्यक्ति स्वकेंद्रित होता जा रहा है और सामाजिक सह-संबंध क्षरित होते जा रहे हैं। बात बस यहीं नहीं रुकती बल्कि मानवीय संबंधों के बीच ऐसी घातक प्रवृत्तियों का जन्म हुआ है जिसने ‘जॉम्बी’ की संकल्पना को स्थापित करने का प्रयास किया है। नियंताओं की जिम्मेदारी है कि भारतीयता की संवेदना का प्रवाह व्यक्ति व समाज के स्तर पर निर्मित करे। साहित्य, विचार, विज्ञान इसके लिए एक सशक्त माध्यम हैं जिस संदर्भ में उत्कृष्टता को स्थापित किए जाने की आवश्यकता है और यह ध्यान रहे कि यह उत्कृष्टता अंतिम जन व सर्वजन के संदर्भ में होनी चाहिए। इसके उपरांत ही ‘हम भारत के लोग’ की संकल्पना सिद्ध होगी।

यह पत्रिका संताल परगना महाविद्यालय, दुमका (झारखंड) की अर्धवार्षिक अंतरानुशासनिक विषय से संबंधित है। यह शोध और रचना की वैश्विक दृष्टि की संकल्पना को समाहित किए हुए है। प्रज्ञा की अधुनातन प्रवृत्तियों को बढ़ावा देना, समाज के वृहत्तर परिवेश की बेहतरी को निरूपित करना इसका प्रमुख उद्देश्य है। विज्ञान, सामाजिक विषय, भाषा, साहित्य, कानून, शिक्षा, दर्शन, तकनीकी, प्रबंधन, कंप्यूटर जैसे विषयों के व्यापक वितान को अपने में समाहित किए हुए यह पत्रिका समाज के वृहत्तर परिवेश में अपना वैचारिक सरोकार स्थापित करने का प्रयास है। अध्ययन का समकाल तेजी से परिवर्तित हो रहा है, सूचना और तकनीकी ने हमारे व्यवहार को व्यापक रूप में परिवर्तित किया है। इस पत्रिका के माध्यम से परंपरा और समकालीनता के बीच सेतु का निर्माण करते हुए भविष्य की ज्ञान संपदा का विस्तार करना है। पत्रिका महाविद्यालय की स्थापना के उद्देश्य को भी अपने में सन्निहित किए हुए है। 1954 में जब तत्कालीन सांसद श्री लाल बाबा हेंब्रम के प्रयास से महाविद्यालय की स्थापना हुई तो इसका उद्देश्य सुदूर इलाक़े में जहाँ संसाधनों की कमी है वहाँ उच्च शिक्षा की स्थापना रहा है। वर्तमान में जब वैश्विक स्तर पर जीवन व सामाजिक संघर्ष लगातार तीव्र होते जा रहें वहीं आज भी सुदूर अंचल में सामाजिक, सांस्कृतिक व भाषाई परिवेश में व्यापक सहजता उपलब्ध है। कभी-कभी यह प्रतीत होता है कि इस सहजता की आवश्यकता तो कथित रूप में मुख्यधारा के पूरे वैश्विक समुदाय को है। पत्रिका के माध्यम से स्थानीय ज्ञान परंपरा को वृहत्तर परिवेश तक पहुँचाना और ‘ग्लोबल को लोकल’ की परिधि में लाना एक मुख्य उद्देश्य है। यह समन्वय ही दुनिया की बेहतरी का एकमात्र जरिया है। जिस दौर में लोग ‘बात’ करना कम कर दिए और ‘बहस’ करने की प्रवृत्ति ज्यादा हो गई है उस दौर में इस पत्रिका के माध्यम से एक विमर्श को निर्मित किए जाने का यह प्रयास मात्र है। इसके माध्यम से सुदूर की सहज ज्ञान परंपरा को समेटने का प्रयास किया जाएगा। यह पहला प्रयास है, उम्मीद है इसे आप सहज ही स्वीकार करेंगे और अपना सहयोग प्रदान करेंगे। नूतन वर्ष की शुभकामनाओं के साथ कि हम मिलकर अब बेहतर करेंगे और बीते समय में जो क्षरण हुआ है उसकी भरपाई की जाए।

अभिवादन के साथ धन्यवाद!

डॉ॰ यदुवंश यादव

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