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कुमारी नेहा की कविता

कुमारी नेहा हिन्दी विभाग संताल परगना कॉलेज, दुमका माँ


मां ज्ञान है मां शान है, बच्चों का खुला आसमान है। तू ही धरती तू ही नभ है, तू ही रब तू ही सब है। पहली बार खुली थी जब आंखें मेरी चेहरा तेरा ही देखा था मां, ज़िन्दगी का हर लम्हा जीना तूझसे ही सीखा था मां। पहली बार चलना भी तूने सिखाया, जितनी बार गिरी तूने ही संभाला मेरी मंजिल को रास्ता भी तूने दिखाया। मेरे मुंह से निकला पहला शब्द तू है मां, दुनिया का सबसे अनमोल उपहार बस तू है मां। संवेदना हो, भावना हो, आस हो मां, जीवन के फुलों का खूबसूरत एहसास हो मां त्याग हो, तपस्या हो, समर्पन हो मां, सच का सुन्दर वर्णन हो मां। कहते है भगवान से बड़ा कोई नहीं होता मैंने भगवान के रूप मे अपनी मां को देखा है, अपने हिस्से का निवाला अपने हाथों से मुझे खिलाया है, हर बार पापा की डांट से मुझे बचाया है। अपनी औलाद के खातिर मां दिन का चैन रात का नींद खोती है, तबीयत ख़राब हो जब मेरी बिस्तर के सिरहाने बैठकर रोती है, वो मां है बच्चों को दर्द मे देख कहां सुकून से होती है। उसकी एक थपकी से नींद आ जाती है वो जब लोरी गाती है, उसे चेहरे पढ़ना आता है बिना कुछ कहे सब समझ जाती है। मां ज़िन्दगी का विश्वास होती हैं, मां जीवन का आस होती हैं। मां चाहे जहां मे जहां भी रहे, हमेशा अपने बच्चों के पास होती हैं। मां का जीवन में कोई पर्याय नहीं है, मां के बिना यह सृष्टि भी अधूरी है। हम एक शब्द है तो वह पूरी भाषा है, मां की यही परिभाषा पूरी है।



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