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खुश रहने पर कहानी

मो मुजफ्फर अंसारी

संताल परगना कॉलेज, दुमका



खुश रहने पर कहानी

एक शिष्य अपने गुरु के पास पहुँचा और बोला,"लोगों को खुश रहने के लिए क्या चाहिए," तूम्हे क्या लगता है? गुरु ने शिष्य से खुद इसका उत्तर देने के लिए कहा,

शिष्य एकक्षण के लिए सोचनेलगा और बोला, “मुझेलगता है कि अगरकिसी की मूलभूत आवश्यकताएंपूरी हो रही हों… खाना-पीना मिल जाए …रहने के लिए जगहहो…एक अच्छी सीनौकरी या कोई कामहो… सुरक्षा हो…तोवह खुश रहेगा.”

यह सुनकरगुरु कुछ नहीं बोलेऔर शिष्य कोअपने पीछे आने काइशारा करते हुए चलनेलगे.

वह एकदरवाजे के पास जाकररुके और बोले, “इसदरवाजे को खोलो…”

शिष्य नेदरवाजा खोला, सामनेमुर्गी का दड़बा था. वहां मुर्गियों औरचूजों का ढेर लगाहुआ था… वेसभी बड़े-बड़ेपिंजड़ों में कैद थे….

“आपमुझे ये क्यों दिखारहे हैं.” शिष्यने आश्चर्य सेपूछा.

इस परगुरु शिष्य सेही प्रश्न-उत्तरकरने लगे.

“क्याइन मुर्गियों कोखाना मिलता है?'”

“हाँ.”

“क्याइनके पास रहने कोघर है?”

“हाँ… कह सकते हैं.”

“क्याये यहाँ कुत्ते-बिल्लियोंसे सुरक्षित हैं?”

“हाँ”

“क्याउनक पास कोई कामहै?”

“हाँ, अंडा देना.”

“क्यावे खुश हैं?”

शिष्य मुर्गियोंको करीब से देखनेलगा. उसे नहीं पताथा कि कैसे पताकिया जाए कि कोईमुर्गी खुश है भीया नहीं…औरक्या सचमुच कोईमुर्गी खुश हो सकतीहै?

वो येसोच ही रहा थाकि गुरूजी बोले, “मेरे साथ आओ.”

दोनों चलनेलगे और कुछ देरबाद एक बड़े सेमैदान के पास जाकर रुके. मैदान मेंढेर सारे मुर्गियां औरचूजे थे… वेन किसी पिंजड़े मेंकैद थे और नउन्हें कोई दाना डालनेवाला था… वेखुद ही ढूंढ-ढूंढकर दाना चुग रहेथे और आपस मेंखेल-कूद रहे थे.


“क्याये मुर्गियां खुशदिख रही हैं?” गुरुजी ने पूछा.

शिष्य कोये सवाल कुछ अटपटालगा, वह सोचने लगा…यहाँका माहौल अलगहै…और ये मुर्गियांप्राकृतिक तरीके सेरह रही हैं… खा-पीरही रही है…औरज्यादा स्वस्थ दिखरही हैं…औरफिर वह दबी आवाज़में बोला-

“शायद!”

“बिलकुलये मुर्गियां खुशहै, बेतूके मतबनो,” गुरु जी बोले, ” पहली जगह पर जोमुर्गियों हैं उनके पासवो सारी चीजें हैंजो तूमने खुशरहने के लिए ज़रूरीमानी थीं.

उनकी मूलभूतआवश्यकताएं… खाना-पीना, रहना सबकुछ है… करने के लिए कामभी है….सुरक्षाभी है… परक्या वे खुश हैं?

वहीँ मैदानोंमें घूमरही मुर्गियों कोखुद अपना भोजन ढूंढनाहै… रहने का इंतजामकरना है… अपनीऔर अपने चूजों कीसुरक्षा करनी है… परफिर भी वे खुशहैं…”

गुरु जीगंभीर होते हुए बोले, ” हम सभी को एकचुनाव करना है, “यातो हम दड़बे कीमुर्गियों की तरह एकपिंजड़े में रह करजी सकते हैं एकऐसा जीवन जहाँ हमाराकोई अस्तित्व नहींहोगा… या हम मैदानकी उन मुर्गियों कीतरह जोखिम उठाकर एक आज़ाद जीवनजी सकते हैं औरअपने अन्दर समाहितअनन्त संभावनाओं कोटटोल सकते हैं…तूमनेखुश रहने के बारेमें पूछा था न… तो यही मेरा जवाबहै… सिर्फ सांसलेकर तूम खुश नहींरह सकते… खुशरहने के लिए तूम्हारेअन्दर जीवन को सचमुचजीने की हिम्मत होनीचाहिए…. इसलिए खुशरहना है तो दड़बेकी मुर्गी मतबनो!”

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