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चलो, एक नई शुरूआत करें

डॉ0 ट्रीजा जेनिफर टोप्पो

सहायक प्राध्यापिका

मनोविज्ञान विभाग

संथाल परगना महाविद्यालय

सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका

झारखण्ड


चलो, एक नई शुरूआत करें

विद्यार्थी जीवन, मानव जीवन का एक ऐसा मोड़ है जहाँ आकर मानव को कई समस्याओं के साथ मुखातिब होना पड़ता है और यदि संपूर्ण जीवन का एक लेखा जोखा तैयार किया जाए तो आप देखेंगें कि यह जीवन का सर्वोŸाम भाग है। जीवन के इस पड़ाव पर व्यक्ति तब कदम रखता है जब वह बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करता है। सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जी0 स्टेनली हॉल ने इस अवस्था को ‘‘तुफान और तनाव’’ की अवस्था की संज्ञा दी है। हालांकि इसके पीछे उन्होनें कई कारकों को जिम्मेदार बताया है। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण कारक (जो मेरे इस लेख से संबंधित है वह) है अपने आगामी भविष्य को लेकर उनके मन में उठने वाले विभिन्न प्रकार के विचारों से उत्पन्न होने वाला तनाव।

प्रिय छात्र-छात्राओं, प्रतियोगिता से भरे इस भागम भाग वाली दूनिया में आपके समक्ष भी कई सारी समस्याएं होंगी। इन समस्याओं के कारण आपको अक्सर तनाव का सामना भी करना पड़ता होगा। स्वयं को दूसरों से आगे रखने की इच्छा, परीक्षा में अच्छे प्राप्तांक लाने का तनाव, आगामी भविष्य को सुरक्षित करने का तनाव ये सभी एक विद्यार्थी के जीवन का अभिन्न अंग हैं। इसके साथ ही साथ एक विद्यार्थी को भूमिका तनाव का भी सामना करना पड़ता है। मनोवैज्ञानिकों का मत है कि तनाव दो प्रकार के होते हैं - सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक तनाव आपको जीवन में आगे बढ़ने में मदद करते हैं और नकारात्मक तनाव आपके जीवन में आगे बढ़ने के मार्ग में बाधक की भूमिका निभाते हैं। ये दोनो सिक्के के दो पहलू के समान हैं। यदि हम ये सोचें कि हमें तनाव हो ही नही ंतो ऐसा संभव नहीं है। परंतु इस बात का निर्धारण हमें करना होगा कि हम तनाव को किस रूप में स्वीकार कर रहे हैं।

अभी आप जीवन के जिस पड़ाव पर हैं, वहाँ जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है वह है सकारात्मकता। एक भँवरे का शरीर भारी होता है। विज्ञान के नियमों के अनुसार वह उड़ नहीं सकता। लेकिन भँवरा ये बात जानता ही नहीं। वह तो यह मानता है कि वह उड़ सकता है और वास्तविकता यह है कि वह उड़ सकता है। किसी पुस्तक में बहुत ही अच्छी पंक्ति लिखी देखी थी - हमारी सफलता और असफलता दोनों के बीच जो सबसे बड़ी बाधा है वह है हमारी सोच। नकारात्मक मन आपको कभी सफलता नहीं दिला सकता।

अक्सर यह देखा जाता है कि बच्चे अपने मन में ये धारणा बना लेते हैं कि ‘‘हमारे साथ वही होता है जो हम मानते हैं’’ या फिर, ‘‘जो भाग्य में लिखा है वही होगा।’’ प्रिय बच्चों, आपके समक्ष आपका संपूर्ण भविष्य है। जिसकी बागडोर सिर्फ और सिर्फ आपके हाथों में है। हमारे साथ जो कुछ भी होता है उसका दायित्व हमारा होता है। जीवन मे सकारात्मकता के कई स्त्रोत हैं। आइए उनपर नजर डालें।

आत्म-विश्वास - ठन्नदंइवन - ज्पतवसम ;2002द्ध के अनुसार, स्वयं पर भरोसा करना या विश्वास करना ही आत्म-विश्वास है। स्मददमल ;1977द्ध ने आत्म-विश्वास को किसी व्यक्ति के प्रदर्शन की अपेक्षाओं और क्षमताओं के आत्म-मूल्यांकन और पूर्व प्रदर्शन के रूप में परिभाषित किया है।

आत्म-विश्वास जीवन में खुशियाँ लाता है। आमतौर पर, जब आपको अपनी क्षमताओं पर भरोसा होता है तो आप अपनी सफलताओं के कारण अधिक खुश रहते हैं। जब आप अपनी क्षमताओं के बारे में महसूस कर रहे होते हैं, तो आप कार्रवाही करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक ऊर्जावान और प्रेरित होते हैं। आत्म-विश्वास सफलता की कुंजी है।

जीवन में आत्म-विश्वास का काफी महत्व है। मनोवैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि आत्म-विश्वास और मानसिक स्वास्थ्य के बीच सार्थक सहसंबंध है। विद्यार्थियों में आत्म-विश्वास का होना अत्यावश्यक है। यही आत्मविश्वास आपको जीवन में आगे बढ़ने में सहायता करेगा। कई बार ऐसा देखा गया है कि बच्चे लगातार प्रयास के बाद भी जब सफल नहीं हो पाते हैं तो उनका आत्म-विश्वास डोलने लगता है और वे आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं। यहीं पर आपकी सफलता आपका साथ छोड़ देती है। जीत की इच्छा रखने वाला विद्यार्थी तब तक प्रयास नहीं छोड़ता जब तक कि वह उसमें कामयाब न हो जाए। अक्सर जहाँ हम उम्मीद छोड़ देते हैं उसके बाद के प्रयास में ही सफलता छिपी होती है। ऐसे व्यक्ति बाद में इस बात पर अफसोस जताते हैं कि काश थोड़ी और कोशिश की होती।

आत्म-विश्वास बढ़ाने के उपाय

आत्म-विश्वास बढ़ाने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं -

1. स्वयं पर विश्वास रखें। अपना एक लक्ष्य निर्धारित करें एवं उन्हें पूरा करने के लिए वचनबद्ध रहें। जब आप अपने द्वारा बनाये गए लक्ष्य को पूरा करते हैं तो इससे आपका आत्म-विश्वास कई गुणा बढ़ जाता है।

2. हमेशा खुश रहने का प्रयास करें। स्वयं को प्रेरित करें। चाहे कितनी बार भी असफलता हाथ लगी हो उससे निराश ना हों। उससे दुखी ना होकर सीख लें क्योंकि अनुभव हमेशा प्रयास से ही आता है।

3. इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं है। आत्म-विश्वास का सबसे बड़ा शत्रु किसी भी कार्य को करने में असफल होने का डर है और यदि आपने इस डर पर जीत हासिल कर ली तो निश्चय ही आप सफलता प्राप्त करेंगे।

4. आत्म-विश्वास बढ़ाने का एक उपाय यह भी है कि वह कार्य करें जिसमें आपकी रूचि हो। अपने करियर को उसी दिशा में आगे बढ़ाएं जिसमें आपकी रूचि हो।

अभिप्रेरणा - जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए अभिप्रेरणा का होना आवश्यक है। सामान्य अर्थ में अभिप्रेरणा वैसी अवस्था है जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।

ठंतवदए ठलतदम - ज्ञंदजवूपज्र ;1980द्ध का मत है कि, मनोविज्ञान में हमलोग अभिप्रेरण को एक काल्पनिक आन्तरिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं जो व्यवहार करने के लिए शक्ति प्रदान करता है तथा एक खास उद्देश्य की ओर व्यवहार को ले जाता है।

डवतहंदए ज्ञपदहए ॅमप्रे - ैबीवचसमत ;1986द्ध के अनुसार, अभिप्रेरण से तात्पर्य एक प्रेरक तथा कर्षण बल से होता है जो खास लक्ष्य की ओर व्यवहार को निरंतर ले जाता है।

विद्यार्थी जीवन में अभिप्रेरणा का काफी महत्वपूर्ण स्थान है। अभिप्रेरणा आपको आपके लक्ष्य की ओर ले जाती है। अभिप्रेरणा की मात्रा इस बात का निर्धारण करती है कि आप अपने लक्ष्य प्राप्ति के प्रति किस तीव्रता से प्रयासरत हैं। विद्यार्थी जीवन में शिक्षा अभिप्रेरणा की भूमिका अहम होती है। जिस विद्यार्थी में शिक्षा की अभिप्रेरणा जितनी अधिक होगी, वह संपूर्ण रूप से शिक्षा ग्रहण करने के प्रति उतना ही अधिक सक्रिय होगा। शिक्षा से अभिप्रेरित विद्यार्थी की चाल में तेजी स्पष्ट रूप से प्रकट होती है, जोशीली आवाज रहती है, वह ऊर्जावान रहते हैं। ऐसे अभिप्रेरित विद्यार्थी का संपूर्ण व्यक्तित्व ही ऊर्जा से भरपूर रहता है। शिक्षा से अभिप्रेरित विद्यार्थी की प्रत्येक क्रिया शिक्षा ग्रहण करने की ओर चयनात्मक होता है। उसके व्यवहार एक खास दिशा की ओर, उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ और व्यवहार सुसंगठित होते हैं।

जीवन के इस पड़ाव पर इस अभिप्रेरण की भूख को जगाने की आवश्यकता है।

अभिप्रेरणा को कैसे बढ़ाएं ?

1. अपने लक्ष्य का निर्धारण करें।

2. केवल बेहतर प्रदर्शन के लिए नहीं महारत हासिल करें। अक्सर विद्यार्थी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए पढ़ते हैं और इस क्रम में वे केवल कुछ चयनित ज्ञान को ही अर्जित कर पाते हैं। परीक्षा में मिलने वाले अंक आपके प्रदर्शन को इंगित करते हैं आपके ज्ञान को नहीं।

3. अपनी पढ़ाई की जिम्मेदारी स्वयं ले। अपने प्रदर्शन के लिए दूसरों को दोष न दें। अपने शिक्षण का दायित्व स्वयं लें। जब आप अपाने प्रदर्शन के लिए दूसरों को जिम्मेवार करते हैं तो स्वभावतः आपके प्रदर्शन में गिरावट आती है। जब आप स्वयं से सीचाने का दायित्व लेते हैं तो इससे आपको ज्ञान अर्जन करने में सहायता मिलती है साथ ही साथ आपको उस समय भी सहायता मिलती है जब आप विकर्षणात्मक परिस्थितियों में होते हैं। अगली बार जब ऐसी परिस्थिति से आपका सामना हो तो एक गहरी साँस लें और कहें - कोई मेरे लिए इसे सीखने वाला नहीं।

4. समृद्ध मनोभाव को अपनाएं। जैसा कि लेख में पहले ही कहा गया है कि भाग्य पर किसी भी चीज को नहीं छोड़ना चाहिए। शोधों से पता चला है कि सफल लोग यह मानते हैं कि बुद्धिमŸा एक ऐसी चीज है जिसे आप अपने जीवन में स्वयं बनाते हैं। मैं इस चीज को अभी नहीं जानता, लेकिन यदि मैं परिश्रम करूँ तो मैं इसे सीख जाऊंगा, इस मनोभाव को विकसित करें।

5. अपने आगामी भविष्य के लिए कल्पना करें। आज से 10 साल बाद आप खुद को कहाँ देखते हैं। उस स्थान पर पहुँचने के लिए आप उस स्तर का प्रयास कर रहे हैं। क्या आप अपने प्रयासों से संतुष्ट हैं ?

स्वतंत्रता - हमारी सफलता की एक बाधक है हमारी दूसरों के ऊपर निर्भरता। जीवन हमारा है लेकिन हम अपने जीवन की महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं, और यही हमारे सफलता के मार्ग की बाधा है। प्रिय बच्चों, आप अभी जीवन के जिस चरण पर हो उसमें आपको कई बार किसी निर्णय को लेते वक्त इस असमंजस में पड़ना पड़ता होगा कि यदि मैने ऐसा किया तो लोग क्या सोचेंगे। लोग तो सोचेंगे ही, चाहे आप वो काम करो या ना करो। इसी उठापटक में समय बीत जाता है और लोगों के पास अफसोस करने के अलावा और कोई चारा नहीं होता है। स्वतंत्रता चाहे निर्णय लेने की हो या खुश रहने की हो, स्वतंत्र रहें। आपकी खुशी का नियंत्रण आपके अपने हाथ में होना चाहिए परिस्थिति के हाथ में नहीं।

प्रिय विद्यार्थियों, हमेशा हर परिस्थिति में खुश रहने का प्रयास करें, क्योंकि प्रयास करना हमारे हाथ में है लेकिन परिणाम एवं परिस्थिति हमारे हाथ में नहीं है।

वर्तमान में जिएं - एक आम व्यक्ति को दिन भर में 70,000 से 1,00,000 तक विचार आते हैं और हमारी सफलता और असफलता इन्हीं विचारों की गुणवŸा पर निर्भर करती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ज्यादातर लोगों का 70 से 90 प्रतिशत तक का समय भूतकाल, दिवास्वप्न और व्यर्थ की बातें सोचने में चला जाता है। भूतकाल हमें अनुभव देता है। भविष्यकाल के लिए हमें योजना बनानी होती है, लेकिन इसका यह आशय नहीं है कि हम अपना बहुमूल्य समय इसी में व्यय कर दें। वर्तमान में जिएं और इस बात का प्रयास करें कि इसे कैसे और अच्छा किया जा सकता है, क्योंकि ना ही भूतकाल और ना ही भविष्यकाल में हमारा नियंत्रण है।

हमारे संथाल परगना महाविद्यालय के विद्यार्थियों से यह आशा है कि वे इन समस्त बातों का ध्यान रखेंगे और इनकी सहायता से अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल करेंगे। आइए, अपने समस्त नकारात्मक सोच को दरकिनार करते एक उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ़ाएँ। चलो, एक नई शुरूआत करें।


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