- rashmipatrika
चुनौतियां
ऋतु झा
संताल परगना कॉलेज, दुमका
चुनौतियां
चांदनी का बचपन बड़े ही लाड प्यार के साथ गुजरा था इसलिए उसे किसी भी काम को सीखने में थोड़ा समय लगता था लेकिन उसकी सबसे अच्छी आदत ये थी कि वह किसी भी चीज को सीखने में बड़ी दिलचस्पी दिखाती थी जो सिखाने वाले को परेशान होने से बचाता था । आज तक उसने केवल कहानियों और टीवी सीरियलों में ही देखा था या पड़ा था कि सुख के बाद दुख भी आता है । चांदनी का एक छोटा सा परिवार था जिसमे चांदनी अपने दादा, दादी, मां, पिताजी और अपने बड़े भाई के साथ के रहती थी। चांदनी से सब को बहुत लगाव था। चांदनी का जीवन बड़े अच्छे ढंग से चल रहा था वो इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ थी कि जो वह देख रही है वह जीवन का केवल एक पहलू है जो बहुत जल्द बदलने वाला है । रोज की तरह चांदनी सुबह उठ कर अपने दादा -दादी के साथ आंगन में धूप के मजे ले रही थी इतने में फोन की घंटी बजी और बहुत ही बुरे खबर के साथ दिन की शुरुवात हुई । खबर ये थी कि चांदनी के चाचा जो कि शहर में रहते थे सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई इस खबर को सुनकर चांदनी के घर वालो पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था चारो ओर सन्नाटा छा गया । जहां हर रोज सुबह हंसी की गूंज सुनाई पड़ती थी अब वहां दिन भी चाचाजी की यादों से शुरू होते थे और रात उनकी बातों में बीत जाती थी।चूंकि दादाजी को अपने बड़े बेटे से खास लगाव था इसीलिए वो ये सदमा ज्यादा दिन बर्दास्त नही कर सके और उन्होंने भी चांदनी और उसके परिवार को अकेला छोड़ दिया ।अब दादी और भी अकेली हो गई थी लेकिन उन्होंने हिम्मत से काम लिया ना ही खुद कमजोर पड़ी और ना ही किसी को पड़ने दिया ।उनके साहस और हिम्मत ने घर में सबको बांध रखा था ।चांदनी के पिता भी अब अपने आप को बेसहारा मेहशूश करने लगे थे क्योंकि अब न कोई उनका साथ देने वाला बचा था और न कोई उनके सुख में हिस्सेदारी लेने वाला ।समय अपनी रफ़्तार पकड़े हुए था चांदनी ने दशवी की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की।चांदनी के भाई ने भी 12वी में अच्छे अंक प्राप्त किए ।अब सामने सबसे बड़ी समस्या घर से बाहर पड़ने के लिए भेजने की क्योंकि गांव में केवल 10वी तक के पड़ाई की व्यवस्था थी।चांदनी के पिता को चांदनी से ज्यादा लगाव था वो उससे दूर नही रहना चाहते थे लेकिन कहा जाता है कि जीवन में सब कुछ मन के मुताबिक होना संभव नहीं ।समय बीतता गया चांदनी पास के शहर में पढ़ने चली गई ।चांदनी के आगे बहुत बड़ी चुनौती थी उसकी 12वी की परीक्षा ।इन तैयारियों में जुटी ही थी कि तब तक एक और चुनौती ने चांदनी को घेर लिया उसके पापा अब इस दुनिया में नहीं थे।ये चांदनी और उसके परिवार के लिए कभी पूरी न होने वाली छती थी क्योंकि अब संभालने वाला कोई नहीं बचा था ।अब चांदनी और उसके परिवार के पास इन सब से उबरने का केवल एक ही उपाय था "हिम्मत" जो को उसकी दादी ने दिखाई ।चांदनी की मां का अब केवल शरीर बच गया था मन तो पिताजी के साथ ही चला गया था ।जीने का सहारा चांदनी और उसका भाई ही रह गए थे ।इतना सब कुछ होने के बाद जब चांदनी बहुत परेशान हो जाती थी तब उसकी दादी जिनके दुखों का मूल्यांकन करना संभव नहीं था वह चांदनी से कहा करती थी कि "समय कभी एक सा नहीं रहता " ये सुन कर चांदनी का मन ऊर्जा से भर उठता था।सब अपने आप को संभाल रहे थे की कब पांच साल बीत गए पता ही नही चला ।चांदनी अब पहले से काफी बदल गई थी।दूसरो की खुशी में अपनी खुशी ढूंढ़ने लगी थी क्योंकि उसे दादी और मां दोनो को देखना पड़ता था ।दादी की अब उम्र हो चुकी थी वो तो उनकी हिम्मत थी जिसने उन्हें अभी तक टूटने नही दिया था लेकिन जीवन के इस दुख भरे पड़ाव को पार करते करते अब वो भी हार गई ।अब चांदनी का परिवार पूरी तरह से खत्म हो चुका था ।कोई साथ देने वाला नही रह गया था उस संकट की घड़ी में चांदनी के मामा ने उसका पूरा सहयोग किया और आगे बड़ने में उसकी मदद की ।इतना सब कुछ होने के बाद भी ,अपने बचपन को पूरी तरह से खोने के बाद भी वह चुनौतीयों का सामना करती रही क्योंकि उसने अपनी दादी से ये बात सिख रखी थी कि"समय एक सा नही रहता "उसने बहुत मेहनत की बहुत से मुस्किलो के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी की और सरकारी कर्मचारी के पद पर नियुक्त हुई ।अब सब कुछ पहले जैसा तो नही लेकिन स्तिथि सामान्य हो गई थी ।