- rashmipatrika
पूजा सिंह की कविता
पूजा सिंह संताल परगना कॉलेज सैनिक के बोल
सरहद पर खड़ा, मैं सोच में पड़ा
कि देश बड़ा या धर्म (कट्टरपंथ) बड़ा।
क्या कुछ नहीं इस माटी का मोल,
जिसके लिए मैं मृत्यु के द्वार खड़ा।
जिस माटी के लिए करोड़ों हुए शहीद,
और आगे भी अगणित होंगे शहीद
लेकिन धर्मांधों को हमारे त्याग
और भावना से कोई फर्क नहीं पड़ा।
कोई कहता है मेरा धर्म बड़ा,
तो कोई कहता है मेरा कर्म बड़ा
पर यह कोई ना देखता,
कि राष्ट्र धर्म आकर कहां है खड़ा।
गैरों से जीत गए हम
और ले ली हमने आजादी
पर अपनों की सहमति ने ही दो भागों में
बांट कर रख दी अपने ही देश की माटी।
मैं यहां देशवासियों के लिए गोली खाकर हूं पड़ा
और देशवासी आपस में लड़कर कहते हैं
कि मैं बड़ा सिर्फ मैं बड़ा।
मेरी मां की गोद हुई सूनी
और बहन की राखी रही पड़ी।
पर तूम कट्टरपंथियों को
इससे नहीं कोई फर्क पड़ा।
जीत चुके हैं हम शत्रुओं से कई युद्ध
पर यह कैसा धर्मांध जैसा शत्रु
अपनों के बीच है पड़ा
जो राष्ट्र एकता में बाधा बनकर है खड़ा।