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बाँका का शांति निकेतन : मंदार क्षेत्र
आशीष कुमार कापरी, छात्र
प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग,
तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर।
बाँका का शांति निकेतन : मंदार क्षेत्र
भागलपुर से दक्षिण मंदार (अब बांका जिला एक) सिद्ध पीठ है। भारतीय सांस्कृतिक इतिहास मे इस स्थान की बड़ी महिमा बताई गयी है। जनश्रुति है कि मंदार पर्वत देवताओ और दानवो द्वारा किए गए समुद्र मंथन में मथनी बना था। जैन तीर्थंकर भगवान बसुपूज्य की यह पंच कल्याणक भूमि रही है। भगवान मधुसूदन की मूर्ति के दर्शनार्थ बड़ी संख्या मे दर्शनार्थी और पर्यटक लोग इस क्षेत्र मे आते रहे हैं इसके साथ मंदार पर्वत की तलहटी मे सरोवर के बीच मंदिर का भी अपना एक आकर्षण है। पूर्व मे गौरांग महाप्रभु और नानक देव का भी आगमन इस क्षेत्र मे हो चुका है। यह पवित्र क्षेत्र तीन ऐसे व्यक्तित्वों का यह कार्य क्षेत्र रहा है जिनहोने इस भूमि को महिमामंडित किया है जिसमे एक थे महर्षि सन्यालजी, दूसरे हुये आनंद शंकर माधवन और तीसरे थे कवि द्विजेंद्र। माधवनजी दूर दक्षिण भारत को छोड़ यहा बस गए ,मंदरांचल पर्वत की तलहटी मे बैठ निष्काम तपस्या, कठोर साधना की। जामिया मिलिया ,दिल्ली से प्रशिक्षित और विश्वकवि रवीद्र नाथ टेगोर के शांति निकेतन मे आचार्य हजारी प्रसाद द्वेवेदी और ,आचार्य क्षितिमोहन सेन ऐसे मनीषियों के निकट रहनेके पश्चयात वे मंदार की तपो भूमि मे एक सपना लेकर आए कि वे मंदार विद्यापीठ की स्थापना कर वे अपने सपने को साकार करेंगे और वह सपना था शांति निकेतन की तर्ज पर एक ऐसी शिक्षण संस्था का निर्माण। माधवनजी सफेद आधी बांह का कुर्ता और पैजामा पहने सदा एक निष्काम योगी नजर आए। जब डॉ जाकिर हुसैन बिहार के राज्यपाल थे, तब वे 1958-59 मे अपने शिष्य माधवनजी के निमंत्रण पर मंदार विध्यापीठ आए थे। डाक्टर साहिब का स्वागत करते करते माधवनजी फफक फफक कर रो पड़े जब जाकिर साहिब ने उनकी पीठ पर हाथ रख उन्हे सांत्वना दी थी। माधवनजी के एक तड़प थी कि वे अपने सपने को साकार करें। उन्हे कृष्ण किंकर सिंह और गोविन्द झा ऐसे लोगो का सहयोग था। डॉ हजारी प्रसाद द्वेवेदी जब 1959-60 मे भागलपुर आए तो माधवनजी से मिलने मंदार पहुंचे और उन्होने रात भी वहाँ बिताई थी। गैर हिन्दी भाषाभाषी होने के वावजूद माधवनजी ने मंदार मे बैठ कर उच्चकोटि की पत्रिका निकाली और साहित्य रचना की। लेकिन उनका यह सपना अधूरा रह गया कि मंदार विध्यापीठ लघु शांति निकेतन बने।
जैन ग्रंथो के अनुसार मंदार गिरि पर चम्पापुरी का मनोहर उद्यान था ,जो प्राचीन चंपानगर के बाहय अंचल मे था इसी उद्यान मे भगवान बासुपूज्य का दीक्षा कल्याणक हुआ था और यही उन्हे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था और इस प्रकार मंदार गिरि को दो कल्याणक मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस लिए जैनियो की दृष्टि मे प्रगेतिहासिक काल से यह पवित्र क्षेत्र माना जा रहा है।
संदर्भ :
1. बिहार-बगाल -उड़िसा के दिगंबर क्षेत्र-लेखक बलभद्र जैन।
(भारतीय ज्ञानपीठ के द्वारा संपादित और निर्देशित पुस्तक)