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मुगलकालीन हिन्दू स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा

अमर कुमार साह

शोध-छात्र,

विश्वविद्यालय इतिहास विभाग

तिलकामाँझी भागलपुर विश्विद्यालय, भागलपुर


मुगलकालीन हिन्दू स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा


मध्यकाल में हिंदू समाज में स्त्रियों की प्रतिष्ठा गिर गई थी। प्राचीन काल से ही स्त्रियों को शिक्षा देने पर कुछ प्रतिबंध थे। उन्हें वेदों के अध्ययन की मनाही थी। पर्दा और बाल विवाह के कारण उनकी स्वतंत्रता सीमित हो गई थी, इसलिए उन्हें अधिक शिक्षा न मिल सकी।1 घर में उन्हें उतनी ही शिक्षा मिल पाती थी जितने कि उन्हें गृहस्थ जीवन व्यतीत करने में आवश्यक पड़ती थी।2 मनु ने कहा है कि पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी को धन जुटाने और खर्च करने में, घर को साफ-सुथरा रखने में, धार्मिक कृत्यों को करने में, भोजन पकाने में और घर के बर्तन की देखभाल में लगाये।3 स्त्री की इस प्रकार की शिक्षा उसे अपनी माँ के द्वारा घर में मिलती थी। विवाह के बाद उसे पति के घर में इसी प्रकार की शिक्षा अपने सास द्वारा मिलती थी। परिवार के आय और व्यय का हिसाब रखने से उसे केवल मौखिक गणित का ही ज्ञान हो पाता था।4 इस प्रकार उन्हें केवल घरेलू और काम-काज संबंधित शिक्षा ही मिल पाती थी। मेगास्थनीज ने एक स्थान पर लिखा है कि ब्राह्मण अपने स्त्रियों को दर्शनशास्त्र की शिक्षा नहीं देते थे, परंतु इस नियम में कभी-कभार ढील दे दी जाती थी।5 हिंदू स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने की सुविधा सामान्यतः नहीं थी फिर भी उन्हें साहित्य, दर्शन, शास्त्र, धर्म और तर्कशास्त्र के अतिरिक्त संगीत और नृत्य में शिक्षा दी जाती थी।6 वास्तव में धनी परिवार की हिंदू और मुस्लिम महिलाओं को अनेक सुविधाएँ प्राप्त थीं। सामान्यतया स्त्रियँ निरक्षर थीं।7

मध्यकाल में लड़कियों के लिए अलग स्कूल नहीं थे। कभी लड़के और लड़कियाँ एक ही स्कूल में पढ़ते थे।8 इससे पता चलता है कि लड़के और लड़कियों के लिए अलग पाठ्यक्रम नहीं थे।9 परंतु धनी लोगों ने अपनी पुत्रियों को पढ़ाने के लिए घर पर अध्यापक की व्यवस्था की होगी।10 इस युग में कुछ दृष्टांत ऐसे मिले हैं जिससे पता चलता है कि स्त्रियों को उच्च कोटि की शिक्षा मिलती थी। भरतचंद्र ने अपनी पुस्तक ‘विन्ध्य सुंदरी’ में लिखा है कि राजकुमारी विद्या बहुत ही विदुषी महिला थी। उसने अपने होने वाले पति से दर्शन और धर्म से संबंधित जटिल प्रश्नों और समस्याओं पर शास्त्रार्थ किया।11 दूसरी स्त्री इच्छावती साहित्य सविता और संगीत में प्रवीण थी। रुक्मिणी व्याकरण, पुराण, स्मृति, शास्त्र, वेदों और वेदांगों में पारंगत थी। ऐसे ही कई दृष्टांत दिए जा सकते हैं। मध्ययुग में नर्तकियाँ थीं जो गान-विद्या और संगीत में निपुण थी। इसके अतिरिक्त कुछ राजकीय परिवारों ने गायन-विद्या में रूचि दिखलायी। पूरनमल की पत्नी हिंदी में सुंदर गीत गाती थी।13 मानसिंह की पत्नी मृगनयनी संगीत में निपुण थी।14 केशवदास, जो अकबर और जहाँगीर के समकालीन थे, ओरछा के राजा इंदर सिंह के दरबार की छः नर्त्तकियों का उल्लेख करते हैं।15 ऐसे ही नर्तकियों के दृष्टांत वंशीदास के ‘मानसमंगल’, धनराम चक्रवर्ती के ‘धर्ममंगल’ और दूसरे विद्वानों की कृतियों में मिलते हैं।16

भक्ति आंदोलन के निर्गुण ईश्वर में आस्था रखने वाली बहुत सी कवयित्रियों के उल्लेख मध्ययुग में मिलते हैं। प्राणनाथ कवि की पत्नी इंदुमती सन् 1549 में कुछ दोहे लिखे।17 अकबर के शासनकाल में कई स्त्रियों के नाम मिलते हैं जिन्होंने कविताएँ लिखीं, जैसे गंगा, जमुना, कालमशी देवी, रानरूधारी और नवलादेवी। परंतु इनकी विस्तृत जानकारी नहीं मिलती।18 स्त्रियों की कविताएँ लिखने की परंपरा बनी रही। 18वीं सदी में भी कुछ नाम मिलते हैं जिनकी ख्याति बढ़ी। उनमें दया बाई का नाम लिया जा सकता है, जिसने 18वीं सदी के मध्य में कविताएँ लिखीं। उनकी लिखी दो पुस्तकें - ‘दयाबोध’ और ‘विनय मलिका’ आज भी प्रसिद्ध हैं।19 दयाबाई की समकालीन सहजोबाई थी जिसने ‘सहज प्रकाश’ नाम की पुस्तक लिखी।20 सगुण ईश्वर में विश्वास रखने वाली, कृष्णामार्गी कवयित्रियों में उदयपुर के राणा भोज की पत्नी मीराबाई प्रमुख है। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं हैं, जैसे नरसी जी का महरा, गीत गोविंद की टीका, राग गोविंद, गर्वगीत स्फुट पद और मीरा के पद।21 इस मार्ग की दूसरी कवयित्री अकबर की समकालीन बावरी साहिब थीं, जो भैयानंद की शिष्या थी। उन्होंने कई पद लिखें। वे हिंदी और उर्दू दोनो भाषाओं में पारंगत थीं। इनके अतिरिक्त कृष्णामार्गी कवयित्रियों में गंगाबाई जिनकी पुस्तक ‘गंगाबाई के पद’ और सोन कुमारी जो आम्बेर की राजकुमारी थीं और जिन्होंने ‘स्वर्णबेली की कविता’ नामक पुस्तक लिखी, के नाम उल्लेखनीय हैं।23 एक मुस्लिम महिला जिसका नाम ताज था (सत्रहवीं सदी) कृष्ण की भक्त थी। उसने ब्रज भाषा में कविताएँ लिखीं।24 राममार्गी कवयित्रियों में ओरछा राज्य की मधुर अली और बंगाल की चन्द्रवती का नाम उल्लेखनीय हैं। मधुर अली ने ‘रामचरित’, ‘गणेश देवलीला’ नामक पुस्तकें लिखीं।25 चंद्रावती प्रसिद्ध कवि बंसीदास की पुत्री थी। उसने एक रामायण की रचना की, जो मौलिकता और सुंदर काव्य के लिए प्रसिद्ध है।26

मगधकाल के रितिकालीन कवियों का उदय हुआ, जिन्होंने स्त्रियों के श्रृंगार पर कवितायें लिखीं। बहुत सी स्त्रियों ने भी श्रृंगार पर कवितायें लिखीं, जिनमें (16वीं, 17वीं सदी) प्रवीण राय पटूर, रुपमती और तीन तरंग प्रमुख थीं।27 प्रवीण राय पटूर ओरछा के राजा इन्द्रजीत के दरबार की नर्त्तकी थी। वह स्वरचित गीत गाती थी।28 उसकी कविताएँ उसकी विद्वता और मौलिकता का परिचायक थी।29 रुपमती सारंगपुर के एक वेश्या की पुत्री थी। उसकी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।30 तीन तरंग ने ओरछा के राजा मधुरकर शाह के संरक्षण में कविताएँ लिखीं।31

अनेक हिंदू स्त्रियों ने विविध विषयों पर कवितायें लिखीं। संत तुलसीदास की पत्नी रत्नावली ने दोहे लिखे।32 सत्रहवीं शताब्दी में उन्नाव की रहने वाली खगनिया ने पहेलियाँ लिखीं जो अधिक लोकप्रिय हुई।33 सत्रहवीं सदी के प्रमुख हिंदी कवि केशवदास की पुत्र वधु ने कवितायें (सवैये) लिखे।34 सत्रहवीं सदी के अंत में बूंदी के राजा बुध सिंह के दरबारी लोकनाथ चौबे की पत्नी कवरानी ने कवितायें लिखीं।35

राजस्थान की कुछ स्त्रियों ने डिंगल भाषा में कवितायें लिखीं। इनका मुख्य उद्देश्य राजकीय परिवारों की महिलाओं का मनोरंजन करना था।36 चंपा रानी, जिसका विवाह बीकानेर के राजा के भाई पृथ्वीराज से हुआ था, कविताएँ लिखती थी और कविता लिखने के कार्य में अपने पति की सहायता करती थी, परंतु उसकी कृति उपलब्ध नहीं है।37 उसने 16वीं सदी के अंत में कविताएँ लिखीं।38 इसी काल की डिंगल भाषा की प्रमुख कवयित्री पद्मा चारिणी थीं। वह चरणमल जी साहू की पुत्री और भरतशंकर की पत्नी थी। वह बीकानेर के राजमहल के जीविकोपार्जन के लिए कार्य करती थी।39

शाहजहाँ के शासनकाल में काकरेची जी नाम की कवयित्री प्रमुख थीं। वह ठाकुर भगेला अंग्रेजी की पुत्री और मेवाड़ के नाहर नरहर दास की पत्नी थी। उसके पति की मृत्यु शाहजहाँ के समय में एक युद्ध में हुई थी।40 औरंगजेब के शासनकाल में नाथी नाम की कवयित्री ने विष्णु की भक्ति में कविताएँ लिखीं। डिंगल भाषा में उपरोक्त कवयित्रियों की कविताएँ साहित्यिक दृष्टि से उच्च कोटि की नहीं थीं।42

ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर भारत में स्त्रियों की रुचि संस्कृत भाषा में नहीं थी। परंतु दक्षिण भारत में स्त्रियों ने संस्कृत के अध्ययन में अधिक रुचि दिखलाई। इसके कई कारण थे। उत्तर भारत में क्षेत्रीय भाषा के विकास के कारण स्त्रियों ने संस्कृत में कोई दिलचस्पी न ली। इसके अतिरिक्त उन्हें क्षेत्रीय भाषाओं को सीखने की सुविधाएँ प्राप्त थीं। संस्कृत भाषा के ह्रास का एक कारण फारसी भाषा का उदय होना था, जो राजभाषा बनी।44 पूर्वी बंगाल में सन् 1600 ईसवी में संस्कृत के विद्वानों ने प्रियंवदा का नाम प्रमुख था। उसने ‘श्याम रहस्य’ नामक पुस्तक लिखी थी। उसने कृष्ण की प्रशंसा में भी गीत लिखें।45

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि मुगल काल में नारी शिक्षा के प्रति मुगल शासकों के उदारवादी दृष्टिकोण के चलते एक अलग ही माहौल बनता दिख रहा था। अकबर के समय नारी शिक्षा का एक विशेष रूप नजर आता है और शैक्षणिक दृष्टिकोण में भी बदलाव देखा जा सकता है। सामाजिक परिवेश भी अनुकूल बनता दिख रहा था।

संदर्भ :

1. एम0 एन0 ला, प्रमोशन ऑफ लर्निग इन इंडिया, पृ0-200; यदुनाथ सरकार, स्टडीज इन मुगल इंडिया, कलकत्ता, 1919, पृ0-301.

2. एफ0 ई0 कीय, ए हिस्ट्री ऑफ एजुकेशन इन इण्डिया एण्ड पाकिस्तान, पृ0-73.

3. मनु, पगए 11.

4. एफ0 ई0 कीय, आपसिट, पृ0-74.

5. एफ0 ई0 कीय, पृ0-75.

6. एम0 एल0 भागी, पृ0-361.

7. वही.

8. ए0 एल0 श्रीवास्त, मेडिएवल इंडियन कल्चर, पृ0-113.

9. वही.

10. वही.

11. वही.

12. ए0 एल0 श्रीवास्तव, पृ0-113.

13. इलियट, जिल्द 4, पृ0-402.

14. उमेश जोशी, भारतीय संगीत का इतिहास, पृ0-204.

15. वही, पृ0-114.

16. वही.

17. सावित्री सिन्हा, मध्यकालीन हिन्दी कवयित्रियाँ, दिल्ली, 1953, पृ0-83; रेखा मिश्रा, पृ0-139.

18. रसाल, साहित्य प्रकाश, 1931, पृ0-109.

19. सावित्री सिन्हा, पृ0-64; रेखा मिश्रा, पृ0-139.

20. वही, पृ0-51-52.

दया बाई और सहजो बाई दोनों स्त्रियाँ चरणदास की शिष्या थीं।

21. सावित्री सिन्हा, आपसिट, पृ0-105, 131-132; उमेश जोशी, भारतीय संगीत का इतिहास, पृ0-246.

22. रेखा मिश्रा, आपसिट, पृ0-140.

23. गंगाबाई विट्ठलदास की शिष्या थी। उनके जीवन के विषय में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।

24. सावित्री सिन्हा, आपसिट, पृ0-192.

25. वही, पृ0-222.

26. टी0 सी0 दासगुप्ता, एस्पेक्ट्स ऑफ बंगाली सोसायटी फ्रॉफ ओल्ड बंगाली लिटरेचर, कलकत्ता, 1947, पृ0-201.

27. रेखा मिश्रा, आपसिट, पृ0-141-142.

28. सावित्री सिन्हा, पृ0-239-240.

29. वही, पृ0-240-241.

30. वही, पृ0-248.

31. कोकशास्त्र ग्रंथ उसके द्वारा लिखा गया, सावित्री सिन्हा, पृ0-242, रेखा मिश्रा, पृ0-142 फुटनोट.

32. सावित्री सिन्हा, पृ0-280, रेखा मिश्रा, पृ0-142.

33. वही, पृ0-287.

34. वही, पृ0-288.

35. वही, पृ0-289.

36. वही, पृ0-28.

37. वही, पृ0-36-37.

38. रेखा मिश्रा, पृ0-143.

39. ऐसा कहा जाता है कि जब अकबर ने बीकानेर पर आक्रमण कर दिया तब वहाँ का राजा अमर सिंह सो रहा था। उस जगाने का साहस किसी को न हुआ और अंत में पद्मा ने गीत गाकर उसे जगाया-वही.

40. सावित्री सिन्हा, पृ0-35.

41. वही, पृ0-34.

42. वही, पृ0-38.

43. रेखा मिश्रा, पृ0-144.

44. वही.

45. वही, पृ0-145.


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