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  • rashmipatrika

लता परासर की कवितायेँ

लता प्रासर

स्थापित कवियत्री

निर्मला कुंज, कंकड़बाग, पटना




(1)

केंचुली छोड़ते मौसम का आनंद मुबारक

अलविदा के साथ प्रणाम आश्विन


उनकी नजरें भेद जानती हैं

हमारी अभेद्य या अभेद

कौन बताएगा किससे पूछूं

शब्द भी गढ़े गए कालांतर में

अभेद और भेद अलग-अलग

मौन और चुप्पी के बीच का भेद

प्रेम और आशिकी का भेद

सहज और बलात का भेद

ऊंच और नीच का भेद

बस कोई बता दे

इसके बीच कहां सांस लेती है

मानवता या मानवतावादी विचार












(2)

त्योहार की त्योरियां छू रही आसमान

कतकी सुप्रभात


बहुत मंहगा है यहां

तेल खेल जेल झेल

बहुत सस्ता है यहां

जान मान धान दान

किसे क्या चाहिए

चुनें गुनें बुनें सपने

आमद नहीं बरामद

खर्च बढ़ाया आफ़त

लता पता जता अपना

जला रखूं नन्हा सपना!





















(3)


चूमकर खाबों को अधर सजा लीजिए

कतकी शुभरात्रि


नींद पलकों पर

अठखेलियां करती

सपनों की बांह पकड़

सफर करती


वो आते हैं

सहलाते हैं

जिंदगी चूम जाते हैं

नींद यूं बसर करती!

लता प्रासर


भुरभुरी मिट्टी से खेलते हाथ को सलाम

कतकी प्रणाम


वो आखिरी नहीं

वो शुरुआत है

उस बिन्दु को

छू कर चले कई

पहुंच गए अनंत की ओर

तूम्हें क्या चाहिए

बोल मेरे मन!







(4)

जाने क्यों बेचैन मौसम हवा की ओर देख मुस्कुरा उठा

कतकी प्रणाम


एकदम से अचानक

भावनाओं को निचोड़ पाना

वो कल्पना है

मानों गहरे ज़ख्म पल में हवा हो जाए

कुछ मरहम कुछ स्पर्श

उफ़ ये कसक

हौले से

दिल से दिल तक का सफर!

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